तुम्हारा ...
तुम्हारी आवाज़ -- ऊँची और मद्धिम -- दोनों
तुम्हारी तोष - तृप्त आँखें
तुम्हारे चिंगुरे - मिंगुरे पहनावे
तुम्हारे बनाये हुए पूरी , पराठे
तुम्हारी चाय -- और वह तुलसी जो रोज़
तुम्हारा अर्घ्य माँगती है..और जो
तुम्हारी चाय में पड़कर
तुम्हारी याद ;
तुम्हारे ' आसीत् - एकदा ' अस्तित्व को ज़रा महका देती है ..और
तुम्हारी बोयी सब्जियाँ
तुम्हारे धुले कपड़े -- चैत की गरी - सी धूप में सूखते ; चुप पड़े कपड़े
आदि .. आदि ..आदि ...
मुझमें घुले हुए हैं
इसीलिए तो
हूँ मैं
तुम्हारा ...
तुम्हारी आवाज़ -- ऊँची और मद्धिम -- दोनों
तुम्हारी तोष - तृप्त आँखें
तुम्हारे चिंगुरे - मिंगुरे पहनावे
तुम्हारे बनाये हुए पूरी , पराठे
तुम्हारी चाय -- और वह तुलसी जो रोज़
तुम्हारा अर्घ्य माँगती है..और जो
तुम्हारी चाय में पड़कर
तुम्हारी याद ;
तुम्हारे ' आसीत् - एकदा ' अस्तित्व को ज़रा महका देती है ..और
तुम्हारी बोयी सब्जियाँ
तुम्हारे धुले कपड़े -- चैत की गरी - सी धूप में सूखते ; चुप पड़े कपड़े
आदि .. आदि ..आदि ...
मुझमें घुले हुए हैं
तुम्हारा ...