ज़मीं के इस कूबड़ पर
जिसे पहाड़ कहा था मैंने
अभी---मैं एक तिल हूँ--
तिल भर
गोरा-सा काले पहाड़ पर
इस तिल में एक दुनिया होगी
पहाड़ का भार होगा
होगा अभयारण्य कि विचरें
जिनका मन करे --
कौन सोच पाया था ?
वे मुनीरका के मकान..
मकान पर मकान..
उनमे कितने सारे तिल !
दुनिया कितनी बार..
अभयारण्य कितने..
कितने भार..!
वह एक जहाज़
जिसे मैं चातक-सा
दौड़ाता हूँ कि पकड़ लूँ ,
मुझे देखता भी होगा?
लगता नहीं
पर हूँ तो मैं .
जहाज़ में के तिलों से
बहुत नीचे ,बहुत पीछे
अदृश्य - प्राय मैं .
कितनी कथाएँ कहने से रह गयीं ..
कितनी व्यथाएं..ओह !
मेरी देह से झरकर
वे सिंच जातीं!
इस कूबड़ में
सब कि सब कि होने लगता
संलयन ज़रा ..
फूटता कभी काले लावे-सा!
काला लावा ..
काला तिल ..
काले पहाड़ पर जो फ़िलवक्त
कूबड़ है .
काला तिल जो उस गुज़रते जहाज़ को
गुज़रा हुआ मैं हूँ ..
कही गयी कथा हूँ..
व्यथा हूँ ..
AND THIS CALLED ABHIVYAKTI.............
जवाब देंहटाएंTHE MOST POWERFUL WEAPON OF WORLD...............
KAVYA..............
OH MY DEAR..............
I LIKE ..............