चाह तेरी है , पर
राह
नहीं दीखती
सुना --
तू
सागर - गर्भित है , पर
उस सागर की
थाह
नहीं दीखती
कुछ आशा बँध
भी जाये तो ले उड़ती है--
निश्चय की झूठी मुस्कान
लो,
मैं फिर अनजान
राह
नहीं दीखती
सुना --
तू
सागर - गर्भित है , पर
उस सागर की
थाह
नहीं दीखती
कुछ आशा बँध
भी जाये तो ले उड़ती है--
निश्चय की झूठी मुस्कान
लो,
मैं फिर अनजान
"निश्चय की झूठी मुस्का
जवाब देंहटाएंलो मैं फिर अनजान
nishchay se kuchh nahi hotaa ? tb....prarthna ? aur to koi rastaa nahi.