शब्दों पर
ज़ोर देकर
उन्हें दुबारा
कहकर
मैं अपनी सोच को सेता हूँ
मेरे ये
संवेदनों के
फ़ाख्ते !!
बस के
बाहर झूलते
मेरे सिर के
बालों को जैसे
हवा - माँ सहलाती है
वैसे ही
मैं इन फ़ाख्तों को
सहलाता हूँ कि
गर्म रहें , पुष्ट हों , मेरे ये
संवेदनों के
फ़ाख्ते
ज़ोर देकर
उन्हें दुबारा
कहकर
मैं अपनी सोच को सेता हूँ
मेरे ये
संवेदनों के
फ़ाख्ते !!
बस के
बाहर झूलते
मेरे सिर के
बालों को जैसे
हवा - माँ सहलाती है
वैसे ही
मैं इन फ़ाख्तों को
सहलाता हूँ कि
गर्म रहें , पुष्ट हों , मेरे ये
संवेदनों के
फ़ाख्ते
सुंदर !
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