सधी हैं
बर्फ़ - सी नज़रें
टिकी हैं
हिलती नहीं
पर , चेहरा जैसे
स्वरित्र - सा गनगनाता है
नज़र की रेख से
इतस्ततः
लगभग , दृष्टि - निर्बन्धित
नज़ारा है ख़ुद
चेहरा का --
(काश ! कोई देखता )
कभी वे बर्फ़ नज़रें
पिघल कर जायँगी बह पार
उसकी धार
नज़र की रेख से हो जायगी साकार
उसकी लीक पर बहता तुम्हारी ओर हूँगा मैं
सदा बहता रहा था
( याद करना !! )
तुम्हारी ओर बहते जब बस करूँगा
पात्र मेरे ;
तुम्हारे आयतन में
पिघली नज़र का ज्वार उठकर आयगा
तब नज़र की रेख से
तकना मुझे ,
सधकर ,
स्वरित्र - सा गनगनाना तुम
कि मेरी ओर बहना !
( गर मन करे )
सड़े मुख पर
करुण स्मिति
देखकर
मेरे, न डरना
बस यही करना
पात्र !
मेरी ओर बहना !
बर्फ़ - सी नज़रें
टिकी हैं
हिलती नहीं
पर , चेहरा जैसे
स्वरित्र - सा गनगनाता है
नज़र की रेख से
इतस्ततः
लगभग , दृष्टि - निर्बन्धित
नज़ारा है ख़ुद
चेहरा का --
(काश ! कोई देखता )
कभी वे बर्फ़ नज़रें
पिघल कर जायँगी बह पार
उसकी धार
नज़र की रेख से हो जायगी साकार
उसकी लीक पर बहता तुम्हारी ओर हूँगा मैं
सदा बहता रहा था
( याद करना !! )
तुम्हारी ओर बहते जब बस करूँगा
पात्र मेरे ;
तुम्हारे आयतन में
पिघली नज़र का ज्वार उठकर आयगा
तब नज़र की रेख से
तकना मुझे ,
सधकर ,
स्वरित्र - सा गनगनाना तुम
कि मेरी ओर बहना !
( गर मन करे )
सड़े मुख पर
करुण स्मिति
देखकर
मेरे, न डरना
बस यही करना
पात्र !
मेरी ओर बहना !
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