एक रोज़ जब सुबह हुई
तो जैसे रात दूर न थी
और भान हुआ कि
जब रात आएगी तो
सुबह बहुत दूर होगी
दिन से रात जैसे सट-सी गयी है
कोई फासला नहीं ..
दिन छूट जाता है
निष्प्रयास !
निःश्वास - सा
पर , एक पानी का पुल है --
पानी का पुल
कि रात छोड़ दिन पर जायें , जा ठहरें ..
ठहरना तो सपना है
हकीकत है बहना
पानी के पुल पर पाँव धँसते हैं
पुल टूटता नहीं --
फट जाता है .
चित्त
फट जाता है .
पैरों से मेरे
पानी झरता है
दिन इतनी दू...र
क्यों है माँ ?
आज तुम्हारे पास सो जाऊँ ?
यह कविता बहुत अच्छी है। सभी कविताएँ पढ़ीं..बहुत अच्छा लिखते हो भाई। ...खेद है कि देर से पढ़ा।
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए शुक्रिया देवेन्द्र जी !
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