चलूँ , एक कविता बनाऊँ !
कब तक ताकूँ राह
भाव - तरंगों की !
सामने का उथला
भाव - सरोवर
तरंगायित नहीं तो क्या ?
चलूँ , इसी में कूद पडूँ!
बेचैन नहीं दिल आज ; यही बेचैनी है
उफ़ क्या चीज़ है कविता भी !?..
छोड़ती नहीं
बेतकल्लुफ़ कभी
मैं कूद पड़ा
इस उथले भाव - सरोवर में
नीचे निकट की सतह में
तलवों ने मेरे चिन्ह दिये
कुछ आगे बढूँ ?
कोशिश में क्या हर्ज़ है ?
कविताई भी
अजीब मर्ज़ है !!
आगे चार क़दम की चाल -
डूबने का डर
कर गया बेहाल
वहाँ और आगे-
गहराइयों में झिलमिलाती
खोती जाती
सतह ललकारती
करती
है सवाल
उत्तर भी देती है
( पर, बिखरे चित्रों में )
वे चित्र बड़े ही अस्त - व्यस्त
बेढब हैं !
फहरने लगता है आगे का
जल - तल वितान
बुनावट सतह की बदलती है पल - छिन
चित्र वे ही
वे अस्त - व्यस्त
और वे बेढब
जुड़ते हैं ...सजते हैं
उभरता है -
चित्र -
सुपरिभाषित
सतह पर बने उस चित्र से फिर गूँजा-
ललकार भरा आमंत्रण !
पर आगे गहराइयों में
उतरने का साहस नहीं
पलट कर देखा भीटे पर
खड़ा है मुस्कराता कोई
आत्म-प्रवंचना की हँसी
संवाद कर गयी
कि ....
'' नहाने आया था भई
लौट चलूँ , शायद ,
कोई कविता भी बन गयी ''
नामवर का अर्थ होता है प्रसिद्ध। नामाबर ?
जवाब देंहटाएंनामाबर का अर्थ होता है -- पत्रवाहक
जवाब देंहटाएंहां..याद आया..
जवाब देंहटाएंनामाबर अपना हवाओं को बताने वाले
फिर न आएंगे पलटकर कभी जाने वाले