गुरुवार, 20 जनवरी 2011

 सुनो सरगम !

तुम्हें कुछ देना ही सब पाना है


प्यार की इस दीवार पे , सरगम!
स्वार्थ की ज़रा-सी दूब
ज़रूर उग आई है:
उघाड़ कर देखो -


तुम्हें कुछ देना ही सब पाना है


अकेला हूँ !


पहले ही दुनिया में -
मेट्रो में , अस्पतालों में ,
सड़कों पर , रेस्त्रां ,
बड़े - बड़े सेमिनारों में -
हर नये दिन वे लोग मिलते हैं
जो कल नहीं मिले थे .


अब गर तुम भी ?
हँ ..
दुनिया का पिंजरा , सरगम!
बड़ा होता जायेगा
( अगर्चे वो कैद ही रहेगी )
ऐसा कि ..
आवाज़ों का कारवाँ
कभी लौट नहीं पायेगा

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