शनिवार, 4 दिसंबर 2010

तुम्हारा ...

तुम्हारा ...


तुम्हारी आवाज़ -- ऊँची और मद्धिम  --  दोनों


तुम्हारी तोष - तृप्त आँखें


तुम्हारे चिंगुरे - मिंगुरे पहनावे


तुम्हारे बनाये हुए पूरी , पराठे


तुम्हारी चाय -- और वह तुलसी जो रोज़


तुम्हारा अर्घ्य माँगती है..और जो


तुम्हारी चाय में पड़कर


तुम्हारी याद ;


तुम्हारे ' आसीत् - एकदा ' अस्तित्व को ज़रा महका देती है ..और


तुम्हारी बोयी सब्जियाँ


तुम्हारे धुले कपड़े -- चैत की गरी - सी धूप में सूखते ; चुप पड़े कपड़े




                       आदि .. आदि ..आदि ...
                         मुझमें   घुले   हुए   हैं
                                      इसीलिए तो
                                               हूँ  मैं




तुम्हारा ...