कविता.. जो असफल हुई
कल शाम ..
देर शाम
नीम की डालों बीच
उलझे चाँद ने
मेरे संजोये
दर्द के
ताल पर उजाला किया
मैं पट जाऊँ!!
कतरा-कतरा अर्घ्य
मुझे मिल रहा है,गुपचुप..
और मैं पट रहा हूँ , चुपचाप ..
मेरी सहयोगिनी भीतों -
तुम्हें मान और प्यार!
कल शाम ..
देर शाम
नीम की डालों बीच
उलझे चाँद ने
मेरे संजोये
दर्द के
ताल पर उजाला किया
मैं पट जाऊँ!!
कतरा-कतरा अर्घ्य
मुझे मिल रहा है,गुपचुप..
और मैं पट रहा हूँ , चुपचाप ..
मेरी सहयोगिनी भीतों -
तुम्हें मान और प्यार!