शनिवार, 22 जनवरी 2011

        तुम्हारी "ना "..सरगम             

 
               (स)


तुम्हारी 'ना' सरगम !
एक सुपरसोनिक ध्वनि थी
जिसकी ज़द में सारा
जहान था    चुप

कुछ ऐसी थी उस ध्वनि  की धमक
कि सारे शोर थे चुप 

न्यूटन , मेरे यार !
मैंने भारहीनता महसूस की

मैं एक भीगे कपड़े-सा
निचोड़ा गया

दोनों पैर
किसी एक खौफ़नाक मुट्ठी में ज़ब्त
क्लौकवाईज़,
खोपड़ी दूसरी  खौफ़नाक मुट्ठी में ज़ब्त
एंटी-
क्लौकवाईज़ :
घुमायी गयी

मेरी आह
वह बूँद है
जो निचुड़ने से छूटी है
मेरी आह
एक ऊँचे नल से गिरी बूँद की
तरह गिरी
              (र)
बदन खदर गया

मोटी-मोटी गहराती लकीरें

बदन की चिप्स बन रही हों जैसे

वे लकीरें क्यारियाँ हैं
जिनमें आँसू जमा  हैं
              (ग)
मैं एक बरधा
अपने प्यार के खूँटे से बंधा..
खूँटे से कहता रहता-
"तुम यहाँ बेकार गड़े हो
उखड़ चलो
चले चलो सिवाने तक 

और
और भी.. आगे तक"

पर खूँटे की एक ही रट है -
"तुम मुझसे बेकार बंधे हो
यह मोटा रस्सा तुम
तोड़ सकते हो
तुममें बेहिसाब ताक़त है 
तुम्हारी गरदन की वह मोटी
नस मैंने देखी थी , मुझे याद है ,
तुम मुझसे बेकार बंधे हो"
                  (म)
और .. ज़िन्दगी हदबंद है

प्यार का पुटपाक
अपने दिल में दबाये
मुझे कई काम करने हैं..
कई काम... सरगम !

कल डिनर रूम पर ही मँगाया था
..टिफ़िन धुलनी है..
दो शर्ट्स हैं
जिनकी कॉलर मैलीं हैं..
..धोनी हैं..
अखबार पढ़ने हैं..

यह भीषण ठण्ड जिन बच्चों के लिए
एक चड्ढी पर ही गुज़र रही है
और जो तिलक ब्रिज के पास कहीं
अपने बदन तोड़ रहे हैं -
मुझे तमाचे जड़ रहे हैं
वे बच्चे मुझे तमाचे ...सरगम ..

और ज़िन्दगी हदबंद है

इधर तुम्हारा फ़ैसला आया
उधर बाबरी वर्डिक्ट , सरगम !

मुझे दोनों रिपोर्टें
कलमबंद करनी हैं .