नामाबर
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
रोकर ...
रोकर
मेरे भीतर का आकाश
निषेचित करता है
तुम्हारे भीतर की
धरा को
मेरे रुदन में
क्लीवता न देखो -
वन्ध्य न कहो
स्वयं को
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