गुरुवार, 20 जनवरी 2011

सुनो सरगम !

लाखों-लाख सालों का वज़न लेकर प्यार-
लाखों-लाख टनों के आँसू लेकर प्यार -
लाखों-लाख इंसानों को पार करके प्यार -
करना -
करते रहना..

फिर निपट अकेले ही
हेल्थ-कार्ड उठाकर
वे दवाइयाँ ढूंढना
जो आज खानी हैं, और
दो - एक टेबलेट दबाकर
लाखों-लाख आगामी ज़िंदगियों
की डगर को सूनी
आँखों से तकना -
तकते रहना .. 
सुनो सरगम !


दुनिया बावली है , सरगम !
इसे बावलों के सिवा सब
बददिमाग़ नज़र आते हैं


हम कोई पाप नहीं कर रहे सरगम !
नहीं तो सोचो -
तुम्हारे और मेरे
दो अलहदा रास्ते
क्यों एक नज़र आते हैं !!


तेरी नियति से मेरी नियति
जुड़ गयी है , रे पगली !
"ये प्यार है"-
प्यार करने वाले कह जाते हैं ..
 सुनो सरगम !

तुम्हें कुछ देना ही सब पाना है


प्यार की इस दीवार पे , सरगम!
स्वार्थ की ज़रा-सी दूब
ज़रूर उग आई है:
उघाड़ कर देखो -


तुम्हें कुछ देना ही सब पाना है


अकेला हूँ !


पहले ही दुनिया में -
मेट्रो में , अस्पतालों में ,
सड़कों पर , रेस्त्रां ,
बड़े - बड़े सेमिनारों में -
हर नये दिन वे लोग मिलते हैं
जो कल नहीं मिले थे .


अब गर तुम भी ?
हँ ..
दुनिया का पिंजरा , सरगम!
बड़ा होता जायेगा
( अगर्चे वो कैद ही रहेगी )
ऐसा कि ..
आवाज़ों का कारवाँ
कभी लौट नहीं पायेगा