शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

 कविता.. जो असफल हुई 



कल शाम ..
देर शाम
नीम की डालों बीच
उलझे चाँद ने
मेरे संजोये
दर्द के
ताल पर उजाला किया

मैं पट जाऊँ!!

कतरा-कतरा अर्घ्य
मुझे मिल रहा है,गुपचुप..
और मैं पट रहा हूँ , चुपचाप ..

मेरी सहयोगिनी भीतों -
तुम्हें मान और प्यार!

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