गुरुवार, 17 मार्च 2011

पानी का पुल

एक रोज़ जब सुबह हुई
तो जैसे रात दूर न थी
और भान हुआ
कि जब रात आयेगी तो
सुबह बहुत दूर होगी

दिन से रात जैसे सट-सी गयी है

कोई फ़ासला नहीं .
दिन छूट जाता है
निष्प्रयास -
निःश्वास-सा

पर एक पानी का बना पुल है -

पानी का पुल -
कि रात छोड़ दिन पर जाएँ
और जा ठहरें

ठहरना तो सपना है


हक़ीक़त है बहना


पानी के इस पुल पर पाँव धँसते हैं

पुल टूटता नहीं
फट जाता है चित्त - सा

दिन इतनी दूर क्यों है माँ ?

आज तुम्हारे पास सो जाऊँ ?

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